ऐन इरफ़ान के शेर
बे-मक़्सद महफ़िल से बेहतर तन्हाई
बे-मतलब बातों से अच्छी ख़ामोशी
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बहुत नज़दीक थे तस्वीर में हम
मगर वो फ़ासला जो दिख रहा था
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बस एक धुन थी समुंदर को पार करने की
मैं जानता था समुंदर के पार कुछ भी न था
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जहाँ तक डूबने का डर है तुम को
चलो हम साथ चलते हैं वहाँ तक
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गामज़न हैं हम मुसलसल अजनबी मंज़िल की सम्त
ज़िंदगी की आरज़ू में ज़िंदगी खोते हुए
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कभी सोचूँ कि ख़ुद मैं लौट आऊँ
कभी सोचूँ कि ऐसा क्यूँ करूँ मैं
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मिरा वजूद जो पत्थर दिखाई देता है
तमाम उम्र की शीशागरी का हासिल है
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मेरी तरफ़ सभी कि निगाहें थीं और मैं
जिस कश्मकश में सब थे उसी कश्मकश में था
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हो दिन कि चाहे रात कोई मसअला नहीं
मेरे लिए हयात कोई मसअला नहीं
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ग़र्क़ होते जहाज़ देखे हैं
सैल-ए-वक़्त-ए-रवाँ समझता हूँ
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करता है कार-ए-रौशनी मुझ को जला के दिन
करती है कार-ए-तीरगी मुझ को बुझा के रात
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