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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Aisha Ayub's Photo'

आइशा अय्यूब

1983 | लखनऊ, भारत

समकालीन प्रमुख महिला शाइरात में शामिल

समकालीन प्रमुख महिला शाइरात में शामिल

आइशा अय्यूब के शेर

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इतना मसरूफ़ कर लिया ख़ुद को

ग़म भी कर ख़ुशी से लौट गए

तुम्हारी ख़ुश-नसीबी है कि तुम समझे नहीं अब तक

अकेले-पन में और तन्हाई में जो फ़र्क़ होता है

कुछ उम्र अपनी ज़ात का दुख झेलते रहे

कुछ उम्र काएनात का दुख झेलना पड़ा

एक लड़की चूड़ियाँ खनका रही थी और तभी

उस खनक से उठ रहा था जैसे ज़िंदानी का शोर

उस से कोई गिला भी करें हम तो क्या करें

वा'दा कोई किया ही नहीं उस ने आज तक

किसी से भी मुख़ातिब हों कोई भी बात होती हो

तुम्हारा नाम लेने का बहाना ढूँड लेते हैं

यही सबब है कि अक्सर उदास रहते हैं

जो हम से दूर हैं वो आस पास रहते हैं

पर समेटे ख़ुद ही बैठा है परिंदा इक तरफ़

जो क़फ़स में ही नहीं उस को रिहा कैसे करूँ

एक आलिम है जो सज्दों में गिला करता है

एक दरवेश है जो हालात-ए-नमनाक में ख़ुश

हद-ए-निगाह देखिए बनने को ग़म-गुसार

उस को भी चुप कराइए जो रो नहीं रहा

उजलत में वो देखो क्या क्या छोड़ गया

अपनी बातें अपना चेहरा छोड़ गया

ख़ाना-ब-दोश हो मुझे हिज्र-ओ-विसाल एक

ऐसे भी ख़ुश नहीं हूँ मैं वैसे भी ख़ुश नहीं

मेरी माँ तो मिरी जन्नत को लिए बैठी है

ऐसे कर लो मिरे पुरखों की दुआ तुम रख लो

उस को रोने से पहले कुछ हम ने यूँ तय्यारी की

कोने में तन्हाई रक्खी कमरे में फैलाई रात

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