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Akhlaq Ahmad Ahan's Photo'

अख़लाक़ अहमद आहन

1974 | दिल्ली, भारत

शोधकर्ता और शायर, अपनी नज़्म "सोचने पे पहरा है" के लिए मशहूर/ प्रोफ़ेसर जेएनयू

शोधकर्ता और शायर, अपनी नज़्म "सोचने पे पहरा है" के लिए मशहूर/ प्रोफ़ेसर जेएनयू

अख़लाक़ अहमद आहन के शेर

ये कैसी जगह है कि दिल खो रहा है

बयाबाँ है सहरा है गुलशन है क्या है

सितारों की गर्दिश दिलों का बिछड़ना

ये कैसे ख़ुदा की है कैसी ख़ुदाई

वो जादू अदाएँ अदाओं में जादू

ये पहुँचाएँ हम को फ़ना से बक़ा तक

तिरे फ़िराक़ में हम ने बहाए अश्क-ए-जिगर

ये सब ने चाहा मगर आए तो लहू आए

राह-ए-हयात में मिली एक पल ख़ुशी

ग़म का ये बोझ दोश पे सामान सा रहा

रस्म-ए-दुनिया के सलासिल में गिरफ़्तारी है

मत ठहरना कि कहीं फाँस जवाँ-तर हो जाए

ग़म-ए-वजूद का मातम करूँ तो कैसे जिऊँ

मगर ख़ुदा तिरे दामन पे दाग़ है कि नहीं

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