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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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अख्तर लख़नवी

1934 - 1995 | कराची, पाकिस्तान

शायर और पत्रकार, लम्बे समय तक रेडियो पाकिस्तान से सम्बद्ध रहे, फ़िल्मों के लिए गीत और संवाद भी लिखे

शायर और पत्रकार, लम्बे समय तक रेडियो पाकिस्तान से सम्बद्ध रहे, फ़िल्मों के लिए गीत और संवाद भी लिखे

अख्तर लख़नवी के शेर

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जज़्बे की कड़ी धूप हो तो क्या नहीं मुमकिन

ये किस ने कहा संग पिघलता ही नहीं है

हसद का रंग पसंदीदा रंग है सब का

यहाँ किसी को कोई अब दुआ नहीं देता

सूने कितने बाम हुए कितने आँगन बे-नूर हुए

चाँद से चेहरे याद आते हैं चाँद निकलते वक़्त बहुत

हमें ख़ुदा पे भरोसा है ना-ख़ुदा पे नहीं

ख़ुदा जो देता है वो ना-ख़ुदा नहीं देता

मौसम-ए-गुल तिरे सदक़े तिरी आमद के निसार

देख मुझ से मिरा साया भी जुदा है अब के

इक तेरे ही कूचे पर मौक़ूफ़ नहीं है कुछ

हर गाम हैं ताज़ीरें हम लोग जहाँ भी हैं

ख़्वाबीदा अपने चाहने वालों को देख कर

मुमकिन है लौट जाए सहर जागते रहो

कितने महबूब घरों से गए किस को मालूम

वापस आए हैं जो अपनों में ख़बर की सूरत

इसी हसरत में कटी राह-ए-हयात

कोई दो-चार क़दम साथ चले

मय-ए-कोहना सही ख़ून-ए-तमन्ना ही सही

एक पैमाना मिरे सामने लाया तो गया

देखो उस ने क़दम क़दम पर साथ दिया बेगाने का

'अख़्तर' जिस ने अहद किया था तुम से साथ निभाने का

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