अख़्तर नज़्मी के दोहे
जीवन भर जिस ने किए ऊँचे पेड़ तलाश
बेरी पर लटकी मिली उस चिड़िया की लाश
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नदिया ने मुझ से कहा मत आ मेरे पास
पानी से बुझती नहीं अंतर्मन की प्यास
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भारी बोझ पहाड़ सा कुछ हल्का हो जाए
जब मेरी चिंता बढ़े माँ सपने में आए
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टैग : माँ
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लौटा गेहूँ बेच कर अपने गाँव किसान
बिटिया गुड़िया सी लगी पत्नी लगी जवान
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आदत से लाचार है आदत नई अजीब
जिस दिन खाया पेट भर सोया नहीं ग़रीब
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खोल दिए कुछ सोच कर सब पिंजरों के द्वार
अब कोई पंछी नहीं उड़ने को तय्यार
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टैग : परिंदा
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यार खिसकती जाएगी मुट्ठी में से रेत
ये तो मुमकिन ही नहीं चिड़िया चुगे न खेत
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ज़िक्र वही आठों पहर वही कथा दिन रात
भूल सके तो भूल जा गए दिनों की बात
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छेड़-छाड़ करता रहा मुझ से बहुत नसीब
मैं जीता तरकीब से हारा वही ग़रीब
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टैग : क़िस्मत
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