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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Akhtar Shahjahanpuri's Photo'

अख़्तर शाहजहाँपुरी

1940 | शाहजहाँपुर, भारत

क्लासिकी अंदाज़ की शायरी के लिए मशहूर

क्लासिकी अंदाज़ की शायरी के लिए मशहूर

अख़्तर शाहजहाँपुरी के शेर

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अभी तहज़ीब का नौहा लिखना

अभी कुछ लोग उर्दू बोलते हैं

ये मो'जिज़ा हमारे ही तर्ज़-ए-बयाँ का था

उस ने वो सुन लिया था जो हम ने कहा था

कोई मंज़र नहीं बरसात के मौसम में भी

उस की ज़ुल्फ़ों से फिसलती हुई धूपों जैसा

वो जुगनू हो सितारा हो कि आँसू

अँधेरे में सभी महताब से हैं

अपनों से जंग है तो भले हार जाऊँ मैं

लेकिन मैं अपने साथ सिपाही लाऊँगा

पुराने वक़्तों के कुछ लोग अब भी कहते हैं

बड़ा वही है जो दुश्मन को भी मुआ'फ़ करे

तुम्हारे ख़त कभी पढ़ना कभी तरतीब से रखना

अजब मशग़ूलियत रहती है बेकारी के मौसम में

मैं झूट को सच्चाई के पैकर में सजाता

क्या कीजिए मुझ को ये हुनर ही नहीं आया

लोग ये सोच के ही परेशान हैं

मैं ज़मीं था तो क्यूँ आसमाँ हो गया

लाज रखनी पड़ गई है दोस्तों की

हम भरी महफ़िल में झूटे हो गए हैं

रंज-ओ-ग़म ठोकरें मायूसी घुटन बे-ज़ारी

मेरे ख़्वाबों की ये ता'बीर भी हो सकती है

रंज-ओ-ग़म सहने की आदत हो गई है

ज़िंदा रहने के सलीक़े दे गया वो

चलो अम्न-ओ-अमाँ है मय-कदे में

वहीं कुछ पल ठहर कर देखते हैं

ये भी क्या बात कि मैं तेरी अना की ख़ातिर

तेरी क़ामत से ज़ियादा तिरा साया चाहूँ

जुगनू था कहकशाँ था सितारा था या गुहर

आँसू किसी की आँख से जब तक गिरा था

जाम-ए-शराब अब तो मिरे सामने रख

आँखों में नूर हाथ में जुम्बिश कहाँ है अब

दिलों में कर्ब बढ़ता जा रहा है

मगर चेहरे अभी शादाब से हैं

ये मुंसिफ़ान-ए-शहर हैं ये पासबान-ए-शहर

इन को बताओ नाम जो बलवाइयों के हैं

वो इक लम्हा जो तेरे वस्ल का था

बयाज़-ए-हिज्र पर लिक्खा हुआ है

ज़रा यादों के ही पत्थर उछालो

नवाह-ए-जाँ में सन्नाटे बहुत हैं

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