अली उल-हसनैन के शेर
अगर हो क़ैस तो फिर जा के ढूँडो लैला को
अगर हो जौन तो फिर फ़ारिहा के साथ रहो
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ख़ुदी से प्यार करो और ख़ुदा के साथ रहो
ये तुम से किस ने कहा बेवफ़ा के साथ रहो
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जब से टूटा है तो चुभता है मिरी आँखों में
ख़्वाब था मेरा किसी काँच के जैसा शायद
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इक तजस्सुस हुआ करता है बुरे काम से क़ब्ल
एक पछतावा बुरे काम के अंजाम के बाद
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सज़ाएँ देखता हूँ और सोचता हूँ मैं
जहाँ में इश्क़ से बढ़ कर कोई भी जुर्म नहीं
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ज़िंदगी ख़्वाब है और ख़्वाब भी ऐसा कि जिसे
जागती आँखों से सब के लिए देखा जाए
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ख़ुदा से चंद माँगें हैं हमारी
हमारी बंदगी हड़ताल पर है
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