Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

आलोक यादव के शेर

515
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

नई नस्लों के हाथों में भी ताबिंदा रहेगा

मैं मिल जाऊँगा मिट्टी में क़लम ज़िंदा रहेगा

दिलकशी थी उन्सियत थी या मोहब्बत या जुनून

सब मराहिल तुझ से जो मंसूब थे अच्छे लगे

प्यार का दोनों पे आख़िर जुर्म साबित हो गया

ये फ़रिश्ते आज जन्नत से निकाले जाएँगे

वाइ'ज़ सफ़र तो मेरा भी था रूह की तरफ़

पर क्या करूँ कि राह में ये जिस्म पड़ा

हुस्न की दिलकशी पे नाज़ कर

आइने बद-नज़र भी होते हैं

सुन रहा हूँ कि वो आएँगे हँसाने मुझ को

आँसुओ तुम भी ज़रा रंग जमाए रखना

मुझ को जन्नत के नज़ारे भी नहीं जचते हैं

शहर-ए-जानाँ ही तसव्वुर में बसा है साहब

यूँ निभाता हूँ मैं रिश्ते 'आलोक'

बे-गुनाही की सज़ा हो जैसे

मिरे लिए हैं मुसीबत ये आइना-ख़ाने

यहाँ ज़मीर मिरा बे-नक़ाब रहता है

धावा बोलेगा बहुत जल्द ख़िज़ाँ का लश्कर

शाख़ को नेज़ा करूँ फूल को तलवार करूँ

हद-ए-इमकान से आगे मैं जाना चाहता हूँ पर

अभी ईमान आधा है अभी लग़्ज़िश अधूरी है

एक उम्र से तुझे मैं बे-उज़्र पी रहा हूँ

तू भी तो प्यास मेरी जाम पी लिया कर

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए