अम्बर खरबंदा के शेर
मुश्किल को समझने का वसीला निकल आता
तुम बात तो करते कोई रस्ता निकल आता
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मैं जोड़ तो देता तिरी तस्वीर के टुकड़े
मुश्किल था कि वो पहला सा चेहरा निकल आता
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मोहब्बत जुर्म है तो फिर सज़ा भी एक जैसी हो
कोई रुस्वा कोई मशहूर हो ऐसा नहीं होता
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हर इक रिश्ता बिखरा बिखरा क्यूँ लगता है
इस दुनिया में सब कुछ झूटा क्यूँ लगता है
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गुज़ारने थे यही चार दिन गुज़ार दिए
न कोई रंज न शिकवा न अब मलाल कोई
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बस और तो क्या होना था दुख-दर्द सुना कर
यारों के लिए एक तमाशा निकल आता
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