अम्मार इक़बाल के शेर
मैं ने चाहा था ज़ख़्म भर जाएँ
ज़ख़्म ही ज़ख़्म भर गए मुझ में
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एक ही बात मुझ में अच्छी है
और मैं बस वही नहीं करता
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मैं ने तस्वीर फेंक दी है मगर
कील दीवार में गड़ी हुई है
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एक दरवेश को तिरी ख़ातिर
सारी बस्ती से इश्क़ हो गया है
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हाथ जिस को लगा नहीं सकता
उस को आवाज़ तो लगाने दो
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टैग : आवाज़
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ये जो मैं हूँ ज़रा सा बाक़ी हूँ
वो जो तुम थे वो मर गए मुझ में
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टैग : वजूद
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उस ने नासूर कर लिया होगा
ज़ख़्म को शाएरी बनाते हुए
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मैं आईनों को देखे जा रहा था
अब इन से बात भी करने लगा हूँ
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ख़ुद ही जाने लगे थे और ख़ुद ही
रास्ता रोक कर खड़े हुए हैं
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और कितनी घुमाओगे दुनिया
हम तो सर थाम कर खड़े हुए हैं
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टैग : दुनिया
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कैसे कैसे बना दिए चेहरे
अपनी बे-चेहरगी बनाते हुए
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कैसा मुझ को बना दिया 'अम्मार'
कौन सा रंग भर गए मुझ में
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