अनीस अहमद अनीस के शेर
अब ग़म का कोई ग़म न ख़ुशी की ख़ुशी मुझे
आख़िर को रास आ ही गई ज़िंदगी मुझे
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गवारा ही न थी जिन को जुदाई मेरी दम-भर की
उन्हीं से आज मेरी शक्ल पहचानी नहीं जाती
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कभी इक बार हौले से पुकारा था मुझे तुम ने
किसी की मुझ से अब आवाज़ पहचानी नहीं जाती
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तवाफ़-ए-माह करना और ख़ला में साँस लेना क्या
भरोसा जब नहीं इंसान को इंसान के दिल पर
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हमीं ने चुन लिए फूलों के बदले ख़ार दामन में
फ़क़त गुलचीं के सर इल्ज़ाम ठहराया नहीं जाता
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यारब मिरे गुनाह क्या और एहतिसाब क्या
कुछ दी नहीं है ख़िज़्र सी उम्र-ए-रवाँ मुझे
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उधर वो अहद-ओ-पैमान-ए-वफ़ा की बात करते हैं
इधर मश्क़-ए-सितम भी तर्क फ़रमाया नहीं जाता
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मैं वो रिंद-ए-नौ नहीं हूँ जो ज़रा सी पी के बहकूँ
अभी और और साक़ी कि मैं फिर सँभल रहा हूँ
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वो अपने दामन-ए-पारा पे भी निगाह करे
जहाँ में मुझ पे उठा कर जो उँगलियाँ गुज़रे
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