अनीस देहलवी के शेर
जो दिल बाँधे वो जादू जानता है
मिरा महबूब उर्दू जानता है
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टैग : उर्दू
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आप का कोई सफ़र बे-सम्त बे-मंज़िल न हो
ज़िंदगी ऐसी न जीना जिस का मुस्तक़बिल न हो
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करना है आप को जो नए रास्तों की खोज
सब जिस तरफ़ न जाएँ उधर जाना चाहिए
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उस बेवफ़ा पे मरने को आमादा दिल नहीं
लेकिन वफ़ा की ज़िद है कि मर जाना चाहिए
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छीन लीं ख़ुशियाँ मिरी आँखों से मेरी नींद भी
ज़िंदगी तू ने मुझे अब तक दिया कुछ भी नहीं
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कैसा अजीब वक़्त है कोई भी हम-सफ़र नहीं
धूप भी मो'तबर नहीं साया भी मो'तबर नहीं
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निगाह चाहिए बस अहल-ए-दिल फ़क़ीरों की
बुरा भी देखूँ तो मुझ को भला नज़र आए
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आप की बातों में आ कर खो दिया दिल का सुकूँ
ज़िंदगी में देखिए मेरी बचा कुछ भी नहीं
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उड़ा गए हैं बहुत धूल जाने वाले लोग
छटे ग़ुबार तो कुछ रास्ता नज़र आए
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सहरा से चले आ भी गए दार-ओ-रसन तक
होना था जिन्हें वो न हमारे हुए लोगो
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पता इस का तो हम रिंदों से पूछो
ख़ुदा को कब ये साधू जानता है
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