अंजुम ख़याली के शेर
कोई तोहमत हो मिरे नाम चली आती है
जैसे बाज़ार में हर घर से गली आती है
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टैग : रुस्वाई
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कहाँ मिला मैं तुझे ये सवाल ब'अद का है
तू पहले याद तो कर किस जगह गँवाया मुझे
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मिरे मज़ार पे आ कर दिए जलाएगा
वो मेरे ब'अद मिरी ज़िंदगी में आएगा
कुछ तसावीर बोल पड़ती हैं
सब की सब बे-ज़बाँ नहीं होतीं
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अँधेरी रात है साया तो हो नहीं सकता
ये कौन है जो मिरे साथ साथ चलता है
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बाज़ वादे किए नहीं जाते
फिर भी उन को निभाया जाता है
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टैग : वादा
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शब को इक बार खुल के रोता हूँ
फिर बड़े सुख की नींद सोता हूँ
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इस नाम का कोई भी नहीं है
जिस नाम से हम पुकारते हैं
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जाँ क़र्ज़ है सो उतारते हैं
हम उम्र कहाँ गुज़ारते हैं
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मुझे कुछ देर रुकना चाहिए था
वो शायद देख ही लेता पलट कर
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अज़ाँ पे क़ैद नहीं बंदिश-ए-नमाज़ नहीं
हमारे पास तो हिजरत का भी जवाज़ नहीं
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मुझे हँसी भी मिरे हाल पर नहीं आती
वो ख़ुद भी रोएगा औरों को भी रुलाएगा
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आँख झपकीं तो इतने अर्से में
जाने कितने बरस गुज़र जाएँ
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उम्र भर जंगल में रह सकता हूँ मैं
इस में घर जैसी फ़ज़ा मौजूद है
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जब तक मैं पहुँचता हूँ कड़ी धूप में चल कर
दीवार का साया पस-ए-दीवार न हो जाए
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