अंजुम रूमानी के शेर
सच के सौदे में न पड़ना कि ख़सारा होगा
जो हुआ हाल हमारा सो तुम्हारा होगा
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टैग : सच
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दिल से उठता है सुब्ह-ओ-शाम धुआँ
कोई रहता है इस मकाँ में अभी
देते नहीं सुझाई जो दुनिया के ख़त्त-ओ-ख़ाल
आए हैं तीरगी में मगर रौशनी से हम
समझी गई जो बात हमारी ग़लत तो क्या
याँ तर्जुमा कुछ और है आयत कुछ और है
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किसी भी हाल में राज़ी नहीं है दिल हम से
हर इक तरह का ये काफ़िर बहाना रखता है
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ये जितने मसअले हैं मश्ग़ले हैं सब फ़राग़त के
न तुम बे-कार बैठे हो न हम बे-कार बैठे हैं
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आज का झगड़ा आज चुका
कल की बातें कल पर टाल
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पाप करो जी खोल कर धब्बों की क्या सोच
जब जी चाहा धो लिए गंगा-जल के साथ
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देखोगे तो आएगी तुम्हें अपनी जफ़ा याद
ख़ामोश जिसे पाओगे ख़ामोश न होगा
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मौसम का आह-ओ-नाला से अंदाज़ा कीजिए
ताज़ा हवा पे बंद न दरवाज़ा कीजिए
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जब तक कि हैं ज़माने में हम से ख़राब लोग
मस्जिद कहीं कहीं कोई मय-ख़ाना चाहिए
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नई ज़िंदगी के नए मक्र ओ फ़न
नए आदमी की नई चाल-ढाल
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पी जाते हैं ज़हर-ए-ग़म-ए-हस्ती हो कि मय हो
हम सा भी ज़माने में बला-नोश न होगा
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और कुछ दिन ख़राब हो लीजे
सूद अपना है इस ज़ियाँ में अभी
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किस की जबीं पे हैं ये सितारे अरक़ अरक़
किस के लहू से चाँद का दामन है दाग़ दाग़
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आएगी हम को रास न यक-रंगी-ए-ख़ला
अहल-ए-ज़मीं हैं हम हमें दिन रात चाहिए
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क़लंदरी है कि रखता है दिल ग़नी 'अंजुम'
कोई दुकाँ न कोई कार-ख़ाना रखता है
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रहे ज़रा दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता पर नज़र 'अंजुम'
उसी सदफ़ से अजब क्या गुहर निकल आए
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