Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Anjum Saleemi's Photo'

महत्वपूर्ण पाकिस्तानी शायर, अपने संजीदा लहजे के लिए विख्यात।

महत्वपूर्ण पाकिस्तानी शायर, अपने संजीदा लहजे के लिए विख्यात।

अंजुम सलीमी के शेर

13.5K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

उदासी खींच लाई है यहाँ तक

मैं आँसू था समुंदर में पड़ा हूँ

किसी तरह से नज़र मुतमइन नहीं होती

हर एक शय को दोबारा बदल के देखता हूँ

तेरे अंदर की उदासी के मुशाबह हूँ मैं

ख़ाल-ओ-ख़द से नहीं आवाज़ से पहचान मुझे

मैं आज ख़ुद से मुलाक़ात करने वाला हूँ

जहाँ में कोई भी मेरे सिवा रह जाए

ख़ाक छानी किसी दश्त में वहशत की है

मैं ने इक शख़्स से उजरत पे मोहब्बत की है

वो इक दिन जाने किस को याद कर के

मिरे सीने से लग के रो पड़ा था

शब-ए-जमाल सलामत रहें तिरे परी-ज़ाद

जिन्हें मैं ख़्वाब सुनाता हूँ रक़्स करता हूँ

माज़रत रौंदे हुए फूलों से कर लूँ तो चलूँ

मुंतज़िर शहर में ताख़ीर से आया हुआ मैं

ज़मीन हाँपने लगती है इक जगह रुक कर

मैं उस का हाथ बटाता हूँ रक़्स करता हूँ

मेरी मिट्टी से बहुत ख़ुश हैं मिरे कूज़ा-गर

वैसा बन जाता हूँ मैं जैसा बनाते हैं मुझे

बस अंधेरे ने रंग बदला है

दिन नहीं है सफ़ेद रात है ये

मिट के आसूदा हो गया हूँ मैं

ख़ाक में ख़ाक-ज़ाद मिल गया है

मैं अंधेरे में हूँ मगर मुझ में

रौशनी ने जगह बना ली है

ऐसी क्या बीत गई मुझ पे कि जिस के बाइस

आब-दीदा हैं मिरे हँसने हँसाने वाले

हिज्र को बीच में नहीं छोड़ा

सब से पहले उसे तमाम किया

किस शफ़क़त में गुँधे हुए मौला माँ बाप दिए

कैसी प्यारी रूहों को मेरी औलाद किया

ख़ुद तक मिरी रसाई नहीं हो रही अभी

हैरत है उस तरफ़ भी नहीं हूँ जिधर मैं हूँ

दर्द से भरता रहा ज़ात के ख़ाली-पन को

थोड़ा थोड़ा यूँही भरपूर किया मैं ने मुझे

ये मोहब्बत का जो अम्बार पड़ा है मुझ में

इस लिए है कि मिरा यार पड़ा है मुझ में

ठीक से याद भी नहीं अब तो

इश्क़ ने मुझ में कब क़याम किया

कैसी होती हैं उदासी की जड़ें

दिखाऊँ तुझे दिल के रेशे

किस ज़माने में मुझ को भेज दिया

मुझ से तो राय भी चाही मिरी

तू मिरे सब्र का अंदाज़ा लगा सकता है

तेरी सोहबत में तिरा हिज्र गुज़ारा है मियाँ

कुछ तो खिंची खिंची सी थी साअत विसाल की

कुछ यूँ भी फ़ासले पे मुझे रख दिया गया

तुझ से ये कैसा तअल्लुक़ है जिसे जब चाहूँ

ख़त्म कर देता हूँ आग़ाज़ भी कर लेता हूँ

कहने सुनने के लिए और बचा ही क्या है

सो मिरे दोस्त इजाज़त मुझे रुख़्सत किया जाए

उठाए फिरता रहा मैं बहुत मोहब्बत को

फिर एक दिन यूँही सोचा ये क्या मुसीबत है

कहो हवा से कि इतनी चराग़-पा फिरे

मैं ख़ुद ही अपने दिए को बुझाने वाला हूँ

हिज्र में भी हम एक दूसरे के

आमने सामने पड़े हुए थे

हाँ ज़माने की नहीं अपनी तो सुन सकता था

काश ख़ुद को ही कभी बैठ के समझाता मैं

मैं दिल-ए-गिरफ़्ता तुझे गुनगुनाता रहता हूँ

बहुत दिनों से मिरे यार ज़ेर-ए-लब है तू

माँ की दुआ बाप की शफ़क़त का साया है

आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है

मैं ख़ुद से मिल के कभी साफ़ साफ़ कह दूँगा

मुझे पसंद नहीं है मुदाख़लत अपनी

इतना तरसाया गया मुझ को मोहब्बत से कि अब

इक मोहब्बत पे क़नाअत नहीं कर सकता मैं

अध-बुने ख़्वाबों का अम्बार पड़ा है दिल में

आँख वालों के लिए है ये अमानत मेरी

चल तो सकता था मैं भी पानी पर

मैं ने दरिया का एहतिराम किया

जस्त भरता हुआ फ़र्दा के दहाने की तरफ़

जा निकलता हूँ किसी गुज़रे ज़माने की तरफ़

एक दिन मेरी ख़ामुशी ने मुझे

लफ़्ज़ की ओट से इशारा किया

मैं एक एक तमन्ना से पूछ बैठा हूँ

मुझे यक़ीं नहीं आता कि मेरा सब है तू

मुझे पता है कि बर्बाद हो चुका हूँ मैं

तू मेरा सोग मना मुझ को सोगवार कर

उस ख़ुदा की तलाश है 'अंजुम'

जो ख़ुदा हो के आदमी सा लगे

ये भी आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बहुत है मुझ को

देखता लेता हूँ उसे हाथ लगा लेता हूँ

आगे बिछी पड़ी रहीं उस के बदन की नेमतें

उस ने बहुत कहा मगर मैं ने उसे चखा नहीं

आँख खुल कर अभी मानूस नहीं हो पाती

और दीवार से तस्वीर बदल जाती है

साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'

तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई

मैं चीख़ता रहा कुछ और भी है मेरा इलाज

मगर ये लोग तुम्हारा ही नाम लेते रहे

सभी दरवाज़े खुले हैं मिरी तन्हाई के

सारी दुनिया को मयस्सर है रिफ़ाक़त मेरी

एक ताबीर की सूरत नज़र आई है इधर

सो उठा लाया हूँ सब ख़्वाब पुराने वाले

पत्थर में कौन जोंक लगाएगा मेरे दोस्त

दिल है तो मुब्तला भी कहीं होना चाहिए

कर रहा हूँ तुझे ख़ुशी से बसर

ज़िंदगी तुझ से दाद चाहता हूँ

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए