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अनवर मिर्ज़ापुरी

मिर्ज़ापुर, भारत

1960 और 1970 के दशकों में मुशायरों के लोकप्रिय शायर

1960 और 1970 के दशकों में मुशायरों के लोकप्रिय शायर

अनवर मिर्ज़ापुरी के शेर

मिरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल जाए

मिरा जाम छूने वाले तिरा हाथ जल जाए

काश हमारी क़िस्मत में ऐसी भी कोई शाम जाए

इक चाँद फ़लक पर निकला हो इक चाँद सर-ए-बाम जाए

अभी रात कुछ है बाक़ी उठा नक़ाब साक़ी

तिरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर सँभल जाए

अकेला पा के मुझ को याद उन की तो जाती है

मगर फिर लौट कर जाती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ

मुझे फूँकने से पहले मिरा दिल निकाल लेना

ये किसी की है अमानत मिरे साथ जल जाए

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल जाए

झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल जाए

मैं ख़ुश हूँ अगर गुलशन के लिए कुछ मेरा लहू काम जाए

लेकिन मुझ को डर है इस का गुलचीं पे इल्ज़ाम जाए

डूब कर मैं ने तूफ़ाँ की दे दी ख़बर

नाख़ुदा बे-ख़बर हो तो मैं क्या करूँ

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