अनवारूल हसन अनवार के शेर
ये अवध है कि जहाँ शाम कभी ख़त्म नहीं
वो बनारस है जहाँ रोज़ सहर होती है
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अब तिरे हिज्र में यूँ उम्र बसर होती है
शाम होती है तो रो रो के सहर होती है
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टैग : हिज्र
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सुकून-ए-दिल न मयस्सर हुआ ज़माने में
न याद रखने में तुम को न भूल जाने में
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बे-ख़याली में भी फिर उन का ख़याल आता है
वही तस्वीर मिरे पेश-ए-नज़र होती है
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भूलने वाले तुझे याद किया है बरसों
दिल-ए-वीराँ को यूँ आबाद किया है बरसों
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साथ जो दे न सका राह-ए-वफ़ा में अपना
बे-इरादा भी उसे याद किया है बरसों
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वो इज़्तिराब-ए-मुसलसल का लुत्फ़ क्या जाने
मुसीबतों से जो घबरा गया ज़माने में
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बिजली गिरी थी कब ये किसी को ख़बर नहीं
अब तक चमन में आग लगी है बहार में
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कुछ अंदलीब का ख़ून जिगर भी है शामिल
गुलों की बज़्म की रंगीनियाँ बढ़ाने में
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