आशिक़ अकबराबादी के शेर
ज़िक्र करता है इस तरह मेरा
मुझ को गोया मिटाए जाता है
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एक रुत्बा है तिरे दर पे गदा-ओ-शह का
आसमाँ कासे लिए फिरता है मेहर-ओ-मह का
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मुझे तुम देख कर समझो कि चाहत ऐसी होती है
मोहब्बत वो बुरी शय है कि हालत ऐसी होती है
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तिरे कूचे में कोई हूर आ जाती तो मैं कहता
कि वो जन्नत तो क्या जन्नत है जन्नत ऐसी होती है
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अपना सानी वो आप ही निकले
आइना भी दिखा के देख लिया
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अपने मौक़े पे हर इक बात भली होती है
शब-ए-फ़ुर्क़त में ये सदमे भी मज़ा देते हैं
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अगर नज़ारा है मंज़ूर खस्ता-हालों का
तो आओ खोल दें जूड़ा तुम्हारे बालों का
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वादा-ए-वस्ल गर किसी से नहीं
आप क्यूँ बे-क़रार फिरते हैं
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साक़ी-ए-गुलफ़ाम ने रक्खी तो है भर कर शराब
डर है उड़ जाए न शीशे से परी बन कर शराब
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या इलाही इस दिल-ए-बेताब की ता'मीर में
किस ने पत्थर रख दिया था इश्क़ की बुनियाद का
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तू सर न गूँध कि शागिर्द होने वाला है
मिरा नसीब तिरे लम्बे लम्बे बालों का
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जल्वा निगाह में है किसी बे-नियाज़ का
पुतली हमारी आँख की पुतला है नाज़ का
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आइने मैं दिखा के कहता हूँ
आप ही हैं कि दूसरा कहिए
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सो गए सुनते ही सुनते वो दिल-ए-ज़ार का हाल
जिस को हम समझे थे अफ़्सूँ वही अफ़्साना हुआ
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न चितवन आप की ठहरी न दिल मिरा ठहरा
उसे सुकूँ हो तो इस को भी कुछ क़रार रहे
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आरज़ू इक बुत की ले कर जाते हैं का'बे को हम
तुर्फ़ा तोहफ़ा पास है अहल-ए-हरम के वास्ते
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गदा-ए-कूचा-ए-जानाँ हूँ मर्तबा है बड़ा
कि मेरे नाम है जागीर बे-नवाई की
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ख़ाक-ए-आशिक़ से जो उगता है मुग़ीलाँ का दरख़्त
उस की मिज़्गाँ का है मरक़द में भी खटका बाक़ी
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पहलू में अगर दिल है तो तू दिल में है मेरे
गो नंंग-ए-ख़लाएक़ हूँ मगर जान-ए-जहाँ हूँ
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वो नैरंगियाँ उन के रोने में भी
कि हँसते रहे सब हसीं देर तक
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