आसिम तन्हा के शेर
कहीं सूरज नज़र आता नहीं है
हुकूमत शहर में अब धुँद की है
डूबता हूँ तो मुझे हाथ कई मिलते हैं
कितनी हसरत से किनारों की तरफ़ देखता हूँ
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तुम्हारे घर के रस्ते की उदासी ख़त्म हो जाए
मुझे घर तक बुलाने से तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता है
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टैग : मुलाक़ात
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जो मंज़िलों के निशानात दे रही हैं तुम्हें
हमारी गूँज भी शामिल है इन सदाओं में
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टैग : इतिहास
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गुमान कहता है मेरा कि एक दिन मुझ पर
तिरी वफ़ा तिरी चाहत का मान बरसेगा
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