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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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असलम हनीफ़

1956 - 2024 | गुन्नौर, भारत

हिन्दुस्तानी शायर, प्रचलित काव्य विधाओं में नये रचनात्मक प्रयोग किये

हिन्दुस्तानी शायर, प्रचलित काव्य विधाओं में नये रचनात्मक प्रयोग किये

असलम हनीफ़ के दोहे

फैला हुआ है हर-तरफ़ एक अजब हैजान

शहर में कर मिट गई मेरी भी पहचान

बुरे जो तेरे दोस्त हैं बुरा उन को जान

होती नहीं बदबू बिना ख़ुश्बू की पहचान

तू मेरे एहसास का जब भी बना आधार

सूरज मेरी ओट से निकला सौ सौ बार

जब भी आऊँ चोरी-छुपे उस के घर की ओर

दुनिया देखे बाग सी मन में नाचे मोर

हर-पल इक आज़ार है हर-पग इक आज़ार

सच्चाई की राह पर चलना है दुश्वार

गोरी लौटी बाग़ से गाती हुई मल्हार

किरनों को जब चुग गई चिड़ियों की चहकार

दुनिया को हम सीख दें बदलें अपने ढंग

ये भी इक खिलवाड़ है सच्चाई के संग

मैं तेरी जानिब चला बादल मेरी ओर

सूरज सर पर गया हुई फिर भी भोर

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