aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अता तुराब के शेर

चाहिए क्या तुम्हें तोहफ़े में बता दो वर्ना

हम तो बाज़ार के बाज़ार उठा लाएँगे

यूँ मोहब्बत से हम ख़ाना-ब-दोशों को बुला

इतने सादा हैं कि घर-बार उठा लाएँगे

हाँ तुझे भी तो मयस्सर नहीं तुझ सा कोई

है तिरा अर्श भी वीराँ मिरे पहलू की तरह

तराश और भी अपने तसव्वुर-ए-रब को

तिरे ख़ुदा से तो बेहतर मिरा सनम है अभी

तूफ़ान-ए-बहर ख़ाक डराता मुझे 'तुराब'

उस से बड़ा भँवर तो सफ़ीने के बीच था

क्या क्या प्यास जागे मिरे दिल के दश्त में

हसरत भी एक आग है लागे जो रात भर

वो इक सुख़न ही हमारी सनद बन जाए

वो इक सुख़न जो तुम्हारी सनद नहीं रखता

इश्क़ तो अपने लहू में ही सँवरता है सो हम

किस लिए रुख़ पे कोई ग़ाज़ा लगा कर देखें

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