अतीक़ अहमद अतीक़ के शेर
ये कहकशाँ ये सितारे ये चाँदनी ये बहार
निगाह मैं न उठाऊँ तो सब के सब बे-कार
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हम ने मय-ख़ाना-ए-मोहब्बत में
बू-ए-मय पर भी दिन गुज़ारे हैं
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हम हैं कि अब भी वादी-ए-ज़ुल्मत में हैं रवाँ
अपने लहू से कर के चराग़ाँ का एहतिमाम
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