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Azeem Quraishi's Photo'

अज़ीम क़ुरैशी

1911

अज़ीम क़ुरैशी के शेर

तिरे विसाल की कब आरज़ू रही दिल को

कि हम ने चाहा तुझे शौक़-ए-बे-सबब के लिए

हुस्न और इश्क़ हैं दोनों काफ़िर

दोनों में इक झगड़ा सा है

चाँद को तुम आवाज़ तो दे लो

एक मुसाफ़िर तन्हा तो है

हिज्र में उस निगार-ए-ताबाँ के

लम्हा लम्हा बरस है क्या कीजे

हम भी किसी शीरीं के लिए ख़ाना-बदर थे

फ़रहाद रह-ए-इश्क़ में तन्हा तो निकला

कहने वाले कहता जा तू

सुनने वाला सुनता तो है

सहरा का कोई फूल मोअ'त्तर तो नहीं था

था एक छलावा कोई मंज़र तो नहीं था

जम भी वही दारा भी सिकंदर भी वही है

जी कर भी तिरा और जो मर कर भी तिरा है

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