Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

अज़हर नक़वी के शेर

702
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

शहर गुम-सुम रास्ते सुनसान घर ख़ामोश हैं

क्या बला उतरी है क्यूँ दीवार-ओ-दर ख़ामोश हैं

रात भर चाँद से होती रहें तेरी बातें

रात खोले हैं सितारों ने तिरे राज़ बहुत

अजब हैरत है अक्सर देखता है मेरे चेहरे को

ये किस ना-आश्ना का आइने में अक्स रहता है

दिल कुछ देर मचलता है फिर यादों में यूँ खो जाता है

जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा रोते रोते सो जाता है

अजब नहीं कि बिछड़ने का फ़ैसला कर ले

अगर ये दिल है तो नादान हो भी सकता है

फिर रेत के दरिया पे कोई प्यासा मुसाफ़िर

लिखता है वही एक कहानी कई दिन से

कल शजर की गुफ़्तुगू सुनते थे और हैरत में थे

अब परिंदे बोलते हैं और शजर ख़ामोश हैं

दुख सफ़र का है कि अपनों से बिछड़ जाने का ग़म

क्या सबब है वक़्त-ए-रुख़्सत हम-सफ़र ख़ामोश हैं

जमी है गर्द आँखों में कई गुमनाम बरसों की

मिरे अंदर जाने कौन बूढ़ा शख़्स रहता है

इक मैं कि एक ग़म का तक़ाज़ा कर सका

इक वो कि उस ने माँग लिए अपने ख़्वाब तक

किनारों से जुदा होता नहीं तुग़्यानियों का दुख

नई मौजों में रहता है पुराने पानियों का दुख

ख़्वाब मुट्ठी में लिए फिरते हैं सहरा सहरा

हम वही लोग हैं जो धूप के पर काटते हैं

जिस रात खुला मुझ पे वो महताब की सूरत

वो रात सितारों की अमानत है सहर तक

ख़ौफ़ ऐसा है कि हम बंद मकानों में भी

सोने वालों की हिफ़ाज़त के लिए जागते हैं

एक हंगामा सा यादों का है दिल में 'अज़हर'

कितना आबाद हुआ शहर ये वीराँ हो कर

अब तो मुझ को भी नहीं मिलती मिरी कोई ख़बर

कितना गुमनाम हुआ हूँ मैं नुमायाँ हो कर

पत्थर जैसी आँखों में सूरज के ख़्वाब लगाते हैं

और फिर हम इस ख़्वाब के हर मंज़र से बाहर रहते हैं

तेरा ही रक़्स सिलसिला-ए-अक्स-ए-ख़्वाब है

इस अश्क-ए-नीम-शब से शब-ए-माहताब तक

एक इक साँस में सदियों का सफ़र काटते हैं

ख़ौफ़ के शहर में रहते हैं सो डर काटते हैं

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए