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अज़लान शाह के शेर

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हार को जीत के इम्कान से बाँधे हुए रख

अपनी मुश्किल किसी आसान से बाँधे हुए रख

तवील उम्र की ढेरों दुआएँ भेजी हैं

मिरे चराग़ को पानी से भरने वालों ने

चुपके से गुज़रते हैं ख़बर भी नहीं होती

दिन रात भी कम-बख़्त जवानी की तरह हैं

मुझ को पहचान तू वक़्त मैं वो हूँ जो फ़क़त

एक ग़लती के लिए अर्श-ए-बरीं से निकला

तुम मोहब्बत का उसे नाम भी दे लो लेकिन

ये तो क़िस्सा किसी हारी हुई तक़दीर का है

हारे हुए लोगों की कहानी की तरह हैं

हम लोग भी बहते हुए पानी की तरह हैं

एड़ियाँ मार के ज़ख़्मी भी हुए लोग मगर

कोई चश्मा नहीं ज़रख़ेज़ ज़मीं से निकला

ये ख़ज़ाने का कोई साँप बना होता है

आदमी इश्क़ में दुनिया से बुरा होता है

चंद क़दमों से ज़ियादा नहीं चलने पाते

जिस को देखो वही क़ैदी किसी ज़ंजीर का है

तू बात नहीं सुनता यही हल है फिर इस का

झगड़े के लिए वक़्त निकालें कोई हम भी

किसी के नाम पे नन्हे दिए जलाते हुए

ख़ुदा को भूल गए नेकियाँ कमाते हुए

तू गया है तो अब याद भी नहीं मुझ को

ये इश्क़ मेरा बुरा हाल करने वाला था

कमाँ तीर तलवार अपनी होती है

मगर ये दुनिया कि हर बार अपनी होती है

किस लिए इस से निकलने की दुआएँ माँगूँ

मुझ को मालूम है मंजधार से आगे क्या है

हाथ सूख के झड़ते हैं जिस्म से अपने

शाख़ कोई समर-बार अपनी होती है

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