बक़ा बलूच के शेर
ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रही
आदमी से आदमी बरहम रहा
गर्मी-ए-शिद्दत-ए-जज़्बात बता देता है
दिल तो भूली हुई हर बात बता देता है
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मैं किनारे पे खड़ा हूँ तो कोई बात नहीं
बहता रहता है तिरी याद का दरिया मुझ में
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जिस्म अपने फ़ानी हैं जान अपनी फ़ानी है फ़ानी है ये दुनिया भी
फिर भी फ़ानी दुनिया में जावेदाँ तो मैं भी हूँ जावेदाँ तो तुम भी हो
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तू ख़ुश है अपनी दुनिया में
मैं तिरी याद में जलता हूँ
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एक उलझन रात दिन पलती रही दिल में कि हम
किस नगर की ख़ाक थे किस दश्त में ठहरे रहे
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कैसा लम्हा आन पड़ा है
हँसता घर वीरान पड़ा है
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अम्न के सारे सपने झूटे
सपनों की ताबीरें झूटी
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टैग : अम्न
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सिर्फ़ मौसम के बदलने ही पे मौक़ूफ़ नहीं
दर्द भी सूरत-ए-हालात बता देता है
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हम ने जिन को सच्चा जाना
निकलीं वो सब बातें झूटी
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हर कूचे में अरमानों का ख़ून हुआ
शहर के जितने रस्ते हैं सब ख़ूनीं हैं
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दर्द उट्ठा था मिरे पहलू में
आख़िर-ए-कार जिगर तक पहुँचा
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