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Bilqis Zafirul Hasan's Photo'

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

1938 | दिल्ली, भारत

भारत की महत्वपूर्ण शायरात में शामिल

भारत की महत्वपूर्ण शायरात में शामिल

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन के शेर

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अनहोनी कुछ ज़रूर हुई दिल के साथ आज

नादान था मगर ये दिवाना कभी था

हर-दिल-अज़ीज़ वो भी है हम भी हैं ख़ुश-मिज़ाज

अब क्या बताएँ कैसे हमारी नहीं बनी

दर बदर की ख़ाक थी तक़दीर में

हम लिए काँधों पे घर चलते रहे

ख़ुद पे ये ज़ुल्म गवारा नहीं होगा हम से

हम तो शो'लों से गुज़़रेंगे सीता समझें

अपनी तो कोई बात बनाए नहीं बनी

कुछ हम कह सके तो कुछ उस ने नहीं सुनी

दहशत-ज़दा ज़मीं पर वहशत भरे मकाँ ये

इस शहर-ए-बे-अमाँ का आख़िर कोई ख़ुदा है

जिन में खो कर हम ख़ुद को भी भूल गए हैं

क्या हम को भी उन आँखों ने ढूँडा होगा

जाने क्या कुछ है आज होने को

जी मिरा चाहता है रोने को

उठ कर चले गए तो कभी फिर आएँगे

फिर लाख तुम बुलाओ सदाएँ दिया करो

है यूँ कि कुछ तो बग़ावत-सिरिश्त हम भी हैं

सितम भी उस ने ज़रूरत से कुछ ज़ियादा किया

मेरी तरह टूटे आईने में उस ने भी

टुकड़े टुकड़े अपने आप को पाया होगा

कितने सादा हैं हम कि बैठे हैं

दाग़-ए-दिल आँसुओं से धोने को

हम तो बेगाने से ख़ुद को भी मिले हैं 'बिल्क़ीस'

किस तवक़्क़ो पे किसी शख़्स को अपना समझें

तमाम लाला गुल के चराग़ रौशन हैं

शजर शजर पे शगूफ़ों में जल रही है हवा

ख़ुद अपनी फ़िक्र उगाती है वहम के काँटे

उलझ उलझ के मिरा हर सवाल ठहरा है

बस एक जान बची थी छिड़क दी राहों पर

दिल-ए-ग़रीब ने इक एहतिमाम सादा किया

तेरी तो 'बिल्क़ीस' निराली ही बातें हैं

इस दुनिया में कैसे तिरा गुज़ारा होगा

नहीं है ख़्वाब दीवाने का हस्ती

ये दुनिया सिर्फ़ इक धोका नहीं है

किस ने कहा किसी का कहा तुम किया करो

लेकिन कहे कोई तो कभी सुन लिया करो

यूँ चुप रहा करे से तो हो जाए है जुनूँ

ज़ख़्म-ए-निहाँ कुरेद के कुछ रो लिया करो

ज़रा सी देर भी रुकता तो कुछ पता चलता

वो रंग था कि थी ख़ुशबू सहाब सा क्या था

हम भी हैं 'बिल्क़ीस' मजरूहीन में

हम पे भी तीर तबर चलते रहे

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