बिस्मिल सईदी के शेर
रो रहा हूँ आज मैं सारे जहाँ के सामने
रोएगा कल देखना सारा जहाँ मेरे लिए
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
हुस्न भी कम्बख़्त कब ख़ाली है सोज़-ए-इश्क़ से
शम्अ भी तो रात भर जलती है परवाने के साथ
-
टैग : हुस्न
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ठोकर किसी पत्थर से अगर खाई है मैं ने
मंज़िल का निशाँ भी उसी पत्थर से मिला है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ज़माना-साज़ियों से मैं हमेशा दूर रहता हैं
मुझे हर शख़्स के दिल में उतर जाना नहीं आता
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सुकूँ नसीब हुआ हो कभी जो तेरे बग़ैर
ख़ुदा करे कि मुझे तू कभी नसीब न हो
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ना-उमीदी है बुरी चीज़ मगर
एक तस्कीन सी हो जाती है
-
टैग : मायूसी
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
दो दिन में हो गया है ये आलम कि जिस तरह
तेरे ही इख़्तियार में हैं उम्र भर से हम
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इश्क़ भी है किस क़दर बर-ख़ुद-ग़लत
उन की बज़्म-ए-नाज़ और ख़ुद्दारियाँ
-
टैग : इश्क़
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
किसी के सितम इस क़दर याद आए
ज़बाँ थक गई मेहरबाँ कहते कहते
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
तुम जब आते हो तो जाने के लिए आते हो
अब जो आ कर तुम्हें जाना हो तो आना भी नहीं
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अधर उधर मिरी आँखें तुझे पुकारती हैं
मिरी निगाह नहीं है ज़बान है गोया
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मोहब्बत में ख़ुदा जाने हुईं रुस्वाइयाँ किस से
मैं उन का नाम लेता हूँ वो मेरा नाम लेते हैं
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
गुल तो गुल ख़ार पे देखी जो कभी गर्म शु'आ'
छा गए बाग़ पे हम अब्र-ए-बहाराँ हो कर
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ख़ुश्बू को फैलने का बहुत शौक़ है मगर
मुमकिन नहीं हवाओं से रिश्ता किए बग़ैर
-
टैग : हवा
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मेरे दिल को भी पड़ा रहने दो
चीज़ रक्खी हुई काम आती है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
काबे में मुसलमान को कह देते हैं काफ़िर
बुत-ख़ाने में काफ़िर को भी काफ़र नहीं कहते
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
दोहराई जा सकेगी न अब दास्तान-ए-इश्क़
कुछ वो कहीं से भूल गए हैं कहीं से हम
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
किया तबाह तो दिल्ली ने भी बहुत 'बिस्मिल'
मगर ख़ुदा की क़सम लखनऊ ने लूट लिया
-
टैग : लखनऊ
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
हम ने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सर
लोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड