चराग़ शर्मा के शेर
ख़ताएँ इस लिए करता हूँ मैं कि जानता हूँ
सज़ा मुझे ही मिलेगी ख़ता करूँ न करूँ
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'मीर' जी इश्क़ माना कि ने'मत नहीं पर मैं इस को बला भी नहीं मानता
मानता हूँ ख़ुदा-ए-सुख़न भी तुम्हें और हुक्म-ए-ख़ुदा भी नहीं मानता
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टैग : मीर तक़ी मीर
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वो शांत बैठा है कब से मैं शोर क्यों न करूँ
बस एक बार वो कह दे कि चुप तो चूँ न करूँ
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हाथ भर दूरी पे है क़िस्मत की चाबी आप की
एक छोटा सा क़दम और कामयाबी आप की
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उन्हों ने अपने मुताबिक़ सज़ा सुना दी है
हमें सज़ा के मुताबिक़ बयान देना है
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मैं ने क़ुबूल कर लिया चुप चाप वो गुलाब
जो शाख़ दे रही थी तिरी ओर से मुझे
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कोई ख़त-वत नहीं फाड़ा कोई तोहफ़ा नहीं तोड़ा
कि वो देखे तो ख़ुद सोचे कि दिल तोड़ा नहीं तोड़ा
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तुम्हें ये ग़म है कि अब चिट्ठियाँ नहीं आतीं
हमारी सोचो हमें हिचकियाँ नहीं आतीं
अब के मिली शिकस्त मिरी ओर से मुझे
जितवा दिया गया किसी कमज़ोर से मुझे
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टैग : हार
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