Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Dinesh Kumar's Photo'

दिनेश कुमार

1977 | कैथल, भारत

दिनेश कुमार के शेर

46
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

मुझ को सफलता बैठे बिठाए नहीं मिली

मैं ने गुहर तलाशे हैं दरिया खँगाल कर

मरासिम बर्फ़ में दबने पाएँ

क़रीब आओ दिसम्बर रहा है

नन्हे लबों ने हँस के जो पापा कहा मुझे

दिन भर की मेरी सारी थकावट उतर गई

दुनिया में मिस्ल-ए-ताज निहायत हसीं था वो

लेकिन वफ़ा का रंग उतरने से पेशतर

देखो दरख़्त काटने से पहले एक बार

इन सब्ज़ टहनियों पे कोई घोंसला हो

दर्द-ए-दिल की इंतिहा थी ज़ब्त टूटा और फिर

आँसुओं का रंग मेरी शाइ'री में गया

मुक़र्रर कर रखी है मैं ने अपने आँसूओं की हद

मिरे दुख-दर्द का पैकर मिरा चेहरा नहीं होता

मरने से भी गुरेज़ मुझ जैसे रिंद को

लेकिन ये हो कि मर के मुझे मय-कदा मिले

शाइरी नाम तसव्वुर में छलकती मय का

मर ही जाते जो पीने की इजाज़त होती

जिस का नक़्श-ए-पा ही मील का पत्थर है

कुछ तो ख़ूबी होगी उस बंजारे में

कर के तारीफ़ वो मिरी झूटी

ज़हर धीमा चटा गया है मुझे

जुड़ा ही रहता है ममता की गर्भनाल से वो

वजूद बेटे का माँ से जुदा नहीं होता

देखो तो काम एक भी हम ने कहाँ किया

पूछो तो एक पल की भी फ़ुर्सत नहीं रही

झूट बोला तो बच गई गर्दन

हक़ बयानी का फ़ाएदा क्या था

अँधेरा शहर में बे-ख़ौफ़ रक़्स करता रहा

चराग़ सारे हवाओं के इख़्तियार में थे

हाट पे क्या बिकता था हम को क्या मतलब

अपनी जेब में बस ख़्वाबों के सिक्के थे

मिलेगी आख़िरी ख़ाने में मौत ही सब को

बिसात-ए-दहर पे पैदल हो या हो फिर वो सवार

ख़ुद-ब-ख़ुद चल के समुंदर ही क़रीब आएगा

हो अगर प्यासे तो हरगिज़ ये सपना देखो

मैं तो मर कर भी जियूँगा शान से

मैं ने ग़ज़लों में उतारी ज़िंदगी

गीली मिट्टी है शायद जड़ पकड़ भी लें

मैं आँखों में सपने बोना चाहता हूँ

इस के मजमे की कोई सीमा नहीं

आदमी दर्शक मदारी ज़िंदगी

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए