Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Dinesh Kumar's Photo'

दिनेश कुमार

1977 | कैथल, भारत

दिनेश कुमार के शेर

84
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

मुझ को सफलता बैठे बिठाए नहीं मिली

मैं ने गुहर तलाशे हैं दरिया खँगाल कर

मरासिम बर्फ़ में दबने पाएँ

क़रीब आओ दिसम्बर रहा है

देखो तो काम एक भी हम ने कहाँ किया

पूछो तो एक पल की भी फ़ुर्सत नहीं रही

जुड़ा ही रहता है ममता की गर्भनाल से वो

वजूद बेटे का माँ से जुदा नहीं होता

हाट पे क्या बिकता था हम को क्या मतलब

अपनी जेब में बस ख़्वाबों के सिक्के थे

देखो दरख़्त काटने से पहले एक बार

इन सब्ज़ टहनियों पे कोई घोंसला हो

कर के तारीफ़ वो मिरी झूटी

ज़हर धीमा चटा गया है मुझे

दर्द-ए-दिल की इंतिहा थी ज़ब्त टूटा और फिर

आँसुओं का रंग मेरी शाइ'री में गया

नन्हे लबों ने हँस के जो पापा कहा मुझे

दिन भर की मेरी सारी थकावट उतर गई

झूट बोला तो बच गई गर्दन

हक़ बयानी का फ़ाएदा क्या था

अँधेरा शहर में बे-ख़ौफ़ रक़्स करता रहा

चराग़ सारे हवाओं के इख़्तियार में थे

शाइरी नाम तसव्वुर में छलकती मय का

मर ही जाते जो पीने की इजाज़त होती

मिलेगी आख़िरी ख़ाने में मौत ही सब को

बिसात-ए-दहर पे पैदल हो या हो फिर वो सवार

ख़ुद-ब-ख़ुद चल के समुंदर ही क़रीब आएगा

हो अगर प्यासे तो हरगिज़ ये सपना देखो

मैं तो मर कर भी जियूँगा शान से

मैं ने ग़ज़लों में उतारी ज़िंदगी

दुनिया में मिस्ल-ए-ताज निहायत हसीं था वो

लेकिन वफ़ा का रंग उतरने से पेशतर

मरने से भी गुरेज़ मुझ जैसे रिंद को

लेकिन ये हो कि मर के मुझे मय-कदा मिले

मुक़र्रर कर रखी है मैं ने अपने आँसूओं की हद

मिरे दुख-दर्द का पैकर मिरा चेहरा नहीं होता

गीली मिट्टी है शायद जड़ पकड़ भी लें

मैं आँखों में सपने बोना चाहता हूँ

जिस का नक़्श-ए-पा ही मील का पत्थर है

कुछ तो ख़ूबी होगी उस बंजारे में

इस के मजमे की कोई सीमा नहीं

आदमी दर्शक मदारी ज़िंदगी

Recitation

बोलिए