एजाज़ अंसारी के शेर
ज़िंदगी दी हिसाब से उस ने
और ग़म बे-हिसाब लिक्खा है
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तमाम शहर से मैं जंग जीत सकता हूँ
मगर मैं तुम से बिछड़ते ही हार जाऊँगा
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सर उठाते हैं यहाँ भी अस्र-ए-हाज़िर के यज़ीद
कल ये ख़ित्ता भी महाज़-ए-कर्बला हो जाएगा
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