फ़य्याज़ अस्वद के शेर
इस तअल्लुक़ को तू रस्ते की रुकावट न समझ
अब किसी और का होना है तो चल जा हो जा
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कब कहा तू साथ मेरे ख़ुद-कुशी कर
डूबता हूँ और तू मंज़र-कशी कर
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हुस्न क्या है नज़र की शोख़ी है
इश्क़ क्या है पता नहीं किया है
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कब से निकला हुआ है किसी खोज में
चाँद अपनी जगह पर नहीं आ रहा
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वो समझ तो लें कि यूँ है उन्हें इस से क्या कि क्यूँ है
मिरी आँखों की ये सुर्ख़ी मिरे होंटों की सियाही
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