फ़राग़ रोहवी के शेर
ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है
थोड़ा झूटा मैं भी ठहरा थोड़ा झूटा तू भी है
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किसी ने राह का पत्थर हमीं को ठहराया
ये और बात कि फिर आईना हमीं ठहरे
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मुझ में है यही ऐब कि औरों की तरह मैं
चेहरे पे कभी दूसरा चेहरा नहीं रखता
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इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा 'फ़राग़'
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा
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टैग : ऐब
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हमारे तन पे कोई क़ीमती क़बा न सही
ग़ज़ल को अपनी मगर ख़ुश-लिबास रखते हैं
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कभी न सोचा था मैं ने उड़ान भरते हुए
कि रंज होगा ज़मीं पर मुझे उतरते हुए
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खुली न मुझ पे भी दीवानगी मिरी बरसों
मिरे जुनून की शोहरत तिरे बयाँ से हुई
कौन आता है अयादत के लिए देखें 'फ़राग़'
अपने जी को ज़रा ना-साज़ किए देते हैं
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टैग : अयादत
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सुना है अम्न-परस्तों का वो इलाक़ा है
वहीं शिकार कबूतर हुआ तो कैसे हुआ
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टैग : अम्न
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दिमाग़ अहल-ए-मोहब्बत का साथ देता नहीं
उसे कहो कि वो दिल के कहे में आ जाए
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टैग : दिल
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न जाने कैसा समुंदर है इश्क़ का जिस में
किसी को देखा नहीं डूब के उभरते हुए
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टैग : इश्क़
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हम से तहज़ीब का दामन नहीं छोड़ा जाता
दश्त-ए-वहशत में भी आदाब लिए फिरते हैं
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तुम्हारा चेहरा तुम्हें हू-ब-हू दिखाऊँगा
मैं आइना हूँ मिरा ए'तिबार तुम भी करो
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यारो हुदूद-ए-ग़म से गुज़रने लगा हूँ मैं
मुझ को समेट लो कि बिखरने लगा हूँ मैं
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टैग : ग़म
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मिरी मैली हथेली पर तो बचपन से
ग़रीबी का खरा सोना चमकता है
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ज़रा सी बात पे क्या क्या न खो दिया मैं ने
जो तुम ने खोया है उस का शुमार तुम भी करो
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न चाँद ने किया रौशन मुझे न सूरज ने
तो मैं जहाँ में मुनव्वर हुआ तो कैसे हुआ
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उसी तरफ़ है ज़माना भी आज महव-ए-सफ़र
'फ़राग़' मैं ने जिधर से गुज़रना चाहा था
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