अयादत पर शेर
अयादत पर की जाने वाली
शायरी बहुत दिल-चस्प और मज़े-दार पहलू रखती है। आशिक़ बीमार होता है और चाहता है कि माशूक़ उस की अयादत के लिए आए। इस लिए वह अपनी बीमारी के तूल पकड़ने की दुआ भी मांगता है लेकिन माशूक़ ऐसा जफ़ा पेशा है कि अयादत के लिए भी नहीं आता। ये रंग एक आशिक़ का ही हो सकता है कि वो सौ-बार बीमार पड़ने का फ़रेब करता है लेकिन उस का मसीह एक बार भी अयादत को नहीं आता। ये सिर्फ़ एक पहलू है इस के अलावा भी अयादत के तहत बहुत दिल-चस्प मज़ामीन बाँथे गए हैं। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए।
बहर-ए-अयादत आए वो लेकिन क़ज़ा के साथ
दम ही निकल गया मिरा आवाज़-ए-पा के साथ
आया न एक बार अयादत को तू मसीह
सौ बार मैं फ़रेब से बीमार हो चुका
वो अयादत को न आया करें मैं दर गुज़रा
हाल-ए-दिल पूछ के और आग लगा जाते हैं
अयादत होती जाती है इबादत होती जाती है
मिरे मरने की देखो सब को आदत होती जाती है
वो अयादत को तो आया था मगर जाते हुए
अपनी तस्वीरें भी कमरे से उठा कर ले गया
अयादत को मिरी आ कर वो ये ताकीद करते हैं
तुझे हम मार डालेंगे नहीं तो जल्द अच्छा हो
तंदुरुस्ती से तो बेहतर थी मिरी बीमारी
वो कभी पूछ तो लेते थे कि हाल अच्छा है
ले मेरी ख़बर चश्म मिरे यार की क्यूँ-कर
बीमार अयादत करे बीमार की क्यूँ-कर
पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा
कितना आसान था इलाज मिरा
एक दिन पूछा न 'हातिम' को कभू उस ने कि दोस्त
कब से तू बीमार है और क्या तुझे आज़ार है
कौन आता है अयादत के लिए देखें 'फ़राग़'
अपने जी को ज़रा ना-साज़ किए देते हैं
जब न था ज़ब्त तो क्यूँ आए अयादत के लिए
तुम ने काहे को मिरा हाल-ए-परेशाँ देखा
इक बार और मेरी अयादत को आइए
अच्छी तरह से मैं अभी अच्छा हुआ नहीं
आते हैं अयादत को तो करते हैं नसीहत
अहबाब से ग़म-ख़्वार हुआ भी नहीं जाता
अपनी ज़बाँ से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग
तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का
कभू बीमार सुन कर वो अयादत को तो आता था
हमें अपने भले होने से वो आज़ार बेहतर था
देखने आए थे वो अपनी मोहब्बत का असर
कहने को ये है कि आए हैं अयादत कर के
आन के इस बीमार को देखे तुझ को भी तौफ़ीक़ हुई
लब पर उस के नाम था तेरा जब भी दर्द शदीद हुआ
आज उस ने हँस के यूँ पूछा मिज़ाज
उम्र भर के रंज-ओ-ग़म याद आ गए
आने लगे हैं वो भी अयादत के वास्ते
ऐ चारागर मरीज़ को अच्छा किया न जाए