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Fauziya rabab's Photo'

फ़ौज़िया रबाब

1988 | गोवा, भारत

फ़ौज़िया रबाब के शेर

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देख सुक़रात ने बस ज़हर पिया था लेकिन

ज़िंदगी मैं तो तुझे घोल के पी जाऊँगी

तुम्हारी याद है मातम-कुनाँ अभी मुझ में

तुम्हारा दर्द अभी तक सियह लिबास में है

कुछ इस लिए भी मुझे कामयाबी मिलती है

मैं अपने बाबा के नक़्श-ए-क़दम पे चलती हूँ

वक़्त जब आइना दिखाता है

आदमी ख़ुद को भूल जाता है

आज फिर तुम को हम ने देखा है

आज महशर बनी हैं ये आँखें

हम ने ग़ज़लों में जो उतारा है

तिरी आँखों का इस्तिआ'रा है

मेरे ख़्वाबों में रोज़ आती हैं

अपनी आँखें सँभाल कर रखिए

मेरी बीनाई कम नहीं होगी

मेरी आँखों में माँ का चेहरा है

मुझ को हर लम्हा मिरी माँ से मोहब्बत है 'रबाब'

मैं किसी रोज़ भुला दूँ उसे मुमकिन ही नहीं

इश्क़ जब से मुझे मयस्सर है

ख़ुद को होती नहीं मयस्सर मैं

तीरगी जो बढ़ती है इक दिया जलाती हूँ

यूँ भी अपनी हस्ती को आइना बनाती हूँ

जब वो कहती है यूँ कि उफ़ तौबा

मेरी तौबा ही टूट जाती है

कूज़ा-गर मैं तिरी मोहब्बत में

अपनी सूरत बिगाड़ लेती हूँ

कहा उस ने बताओ मेरे बिन ये ज़िंदगी क्या है

कहा मैं ने वही जो पानियों मैं झाग होते हैं

मुझ से पूछा जो किसी ने तिरी पहचान बता

मैं पुकारी मैं तुम्हारी मैं तुम्हारी मौला

अक्स जो आसमाँ पे रक्खा है

एक दिन आइने में उतरेगा

सर पे गर साएबाँ नहीं तो क्या

भय्या मेरा तो कुल जहाँ हो तुम

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