Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Goya Faqir Mohammad's Photo'

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

1784 - 1850 | लखनऊ, भारत

नासिख़ के शिष्य, मराठा शासक यशवंत राव होलकर और अवध के नवाब ग़ाज़ी हैदर की सेना के सदस्य

नासिख़ के शिष्य, मराठा शासक यशवंत राव होलकर और अवध के नवाब ग़ाज़ी हैदर की सेना के सदस्य

गोया फ़क़ीर मोहम्मद के शेर

995
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

आसमाँ कहते हैं जिस को वो ज़मीन-ए-शेर है

माह-ए-नौ मिस्रा है वस्फ़-ए-अबरू-ए-ख़मदार में

गया है कूचा-ए-काकुल में अब दिल

मुसलमाँ वारिद-ए-हिन्दोस्ताँ है

गर हमारे क़त्ल के मज़मूँ का वो नामा लिखे

बैज़ा-ए-फ़ौलाद से निकलें कबूतर सैकड़ों

दर पे नालाँ जो हूँ तो कहता है

पूछो क्या चीज़ बेचता है ये

हर गाम पे ही साए से इक मिस्रा-ए-मौज़ूँ

गर चंद क़दम चलिए तो क्या ख़ूब ग़ज़ल हो

बिजली चमकी तो अब्र रोया

याद गई क्या हँसी किसी की

सख़्त है हैरत हमें जो ज़ेर-ए-अबरू ख़ाल है

हम तो सुनते थे कि का'बे में कोई हिन्दू नहीं

वो तिफ़्ल-ए-नुसैरी आए शायद

क़स्में दूँ मुर्तज़ा-अली की

मिस्ल-ए-तिफ़्लाँ वहशियों से ज़िद है चर्ख़-ए-पीर को

गर तलब मुँह की करें बरसाए पत्थर सैकड़ों

ख़ून मिरा कर के लगाना हिना मेरे ब'अद

दस्त रंगीं हों अंगुश्त-नुमा मेरे ब'अद

दिमाग़ और ही पाती हैं इन हसीनों में

ये माह वो हैं नज़र आएँ जो महीनों में

नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत

सुना है हम ने 'गोया' की ज़बानी

सारे क़ुरआन से उस परी-रू को

याद इक लफ़्ज़-ए-लन-तरानी है

जो पिन्हाँ था वही हर सू अयाँ है

ये कहिए लन तरानी अब कहाँ है

अपने सिवा नहीं है कोई अपना आश्ना

दरिया की तरह आप हैं अपने कनार में

नक़्श-ए-पा पंच-शाख़ा क़बर पर रौशन करो

मर गया हूँ मैं तुम्हारी गरमी-ए-रफ़्तार पर

जुनूँ हाथ जो वो ज़ुल्फ़ आई होती

आह ने अर्श की ज़ंजीर हिलाई होती

ख़ार चुभ कर जो टूटता है कभी

आबला फूट फूट रोता है

होगा कोई मुझ सा महव-ए-तसव्वुर

जिसे देखता हूँ समझता हूँ तू है

ज़ोफ़ से रहता है अब पाँव पे सर

आप-अपनी ठोकरें खाते हैं हम

नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर

क्या करूँ आलम-ए-जवानी है

मर के भी तिरी सूरत को देखने दूँगा

पड़ूँगा ग़ैर की आँखों में वो ग़ुबार हूँ मैं

जामा-ए-सुर्ख़ तिरा देख के गुल

पैरहन अपना क़बा करते हैं

ठुकरा के चले जबीं को मेरी

क़िस्मत की लिखी ने यावरी की

ज़ाहिदो क़ुदरत-ए-ख़ुदा देखो

बुत को भी दावा-ए-ख़ुदाई है

Recitation

बोलिए