गोया फ़क़ीर मोहम्मद के शेर
बिजली चमकी तो अब्र रोया
याद आ गई क्या हँसी किसी की
न होगा कोई मुझ सा महव-ए-तसव्वुर
जिसे देखता हूँ समझता हूँ तू है
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ऐ जुनूँ हाथ जो वो ज़ुल्फ़ न आई होती
आह ने अर्श की ज़ंजीर हिलाई होती
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नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत
सुना है हम ने 'गोया' की ज़बानी
अपने सिवा नहीं है कोई अपना आश्ना
दरिया की तरह आप हैं अपने कनार में
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टैग : दरिया
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नक़्श-ए-पा पंच-शाख़ा क़बर पर रौशन करो
मर गया हूँ मैं तुम्हारी गरमी-ए-रफ़्तार पर
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सारे क़ुरआन से उस परी-रू को
याद इक लफ़्ज़-ए-लन-तरानी है
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न मर के भी तिरी सूरत को देखने दूँगा
पड़ूँगा ग़ैर की आँखों में वो ग़ुबार हूँ मैं
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नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर
क्या करूँ आलम-ए-जवानी है
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टैग : जवानी
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ख़ार चुभ कर जो टूटता है कभी
आबला फूट फूट रोता है
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टैग : आबला
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ज़ाहिदो क़ुदरत-ए-ख़ुदा देखो
बुत को भी दावा-ए-ख़ुदाई है
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वो तिफ़्ल-ए-नुसैरी आए शायद
क़स्में दूँ मुर्तज़ा-अली की
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ज़ोफ़ से रहता है अब पाँव पे सर
आप-अपनी ठोकरें खाते हैं हम
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ख़ून मिरा कर के लगाना न हिना मेरे ब'अद
दस्त रंगीं न हों अंगुश्त-नुमा मेरे ब'अद
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दिमाग़ और ही पाती हैं इन हसीनों में
ये माह वो हैं नज़र आएँ जो महीनों में
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जामा-ए-सुर्ख़ तिरा देख के गुल
पैरहन अपना क़बा करते हैं
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आसमाँ कहते हैं जिस को वो ज़मीन-ए-शेर है
माह-ए-नौ मिस्रा है वस्फ़-ए-अबरू-ए-ख़मदार में
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दर पे नालाँ जो हूँ तो कहता है
पूछो क्या चीज़ बेचता है ये
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हर गाम पे ही साए से इक मिस्रा-ए-मौज़ूँ
गर चंद क़दम चलिए तो क्या ख़ूब ग़ज़ल हो
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सख़्त है हैरत हमें जो ज़ेर-ए-अबरू ख़ाल है
हम तो सुनते थे कि का'बे में कोई हिन्दू नहीं
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ठुकरा के चले जबीं को मेरी
क़िस्मत की लिखी ने यावरी की
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गया है कूचा-ए-काकुल में अब दिल
मुसलमाँ वारिद-ए-हिन्दोस्ताँ है
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गर हमारे क़त्ल के मज़मूँ का वो नामा लिखे
बैज़ा-ए-फ़ौलाद से निकलें कबूतर सैकड़ों
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मिस्ल-ए-तिफ़्लाँ वहशियों से ज़िद है चर्ख़-ए-पीर को
गर तलब मुँह की करें बरसाए पत्थर सैकड़ों
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जो पिन्हाँ था वही हर सू अयाँ है
ये कहिए लन तरानी अब कहाँ है
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