हनीफ़ नज्मी के शेर
वो इक जगह न कहीं रह सका और उस के साथ
किराया-दार थे हम भी मकाँ बदलते रहे
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अगर जहाँ में कोई आइना नहीं तेरा
तो फिर तुझी को तिरे रू-ब-रू करूँगा मैं
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