Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

हुमैरा राहत के शेर

2.7K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

बहुत ताख़ीर से पाया है ख़ुद को

मैं अपने सब्र का फल हो गई हूँ

सुना है ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होते

सुना है इश्क़ ख़ता है सो कर के देखते हैं

हुज़ूर आप कोई फ़ैसला करें तो सही

हैं सर झुके हुए दरबार भी लगा हुआ है

ज़िक्र सुनती हूँ उजाले का बहुत

उस से कहना कि मिरे घर आए

तअल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है

उस को भूलना है और उस को याद करना है

गुज़र जाएगी सारी रात इस में

मिरा क़िस्सा कहानी से बड़ा है

जहाँ इक शख़्स भी मिलता नहीं है चाहने से

वहाँ ये दिल हथेली पर ज़माना चाहता है

मिरे दिल के अकेले घर में 'राहत'

उदासी जाने कब से रह रही है

ये किस की याद की बारिश में भीगता है बदन

ये कैसा फूल सर-ए-शाख़-ए-जाँ खिला हुआ है

बना कर एक घर दिल की ज़मीं पर उस की यादों का

कभी आबाद करना है कभी बर्बाद करना है

हम से इश्क़ का मफ़्हूम पूछो

ये लफ़्ज़ अपने मआनी से बड़ा है

जो मंज़िल तक जा के और कहीं मुड़ जाए

तुम ऐसे रस्ते के दुख से ना-वाक़िफ़ हो

वो मुझ को आज़माता ही रहा है ज़िंदगी भर

मगर ये दिल अब उस को आज़माना चाहता है

वो इश्क़ को किस तरह समझ पाएगा जिस ने

सहरा से गले मिलते समुंदर नहीं देखा

ख़ुशी मेरी गवारा थी क़िस्मत को दुनिया को

सो मैं कुछ ग़म बरा-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब उठा लाई

उसे भी ज़िंदगी करनी पड़ेगी 'मीर' जैसी

सुख़न से गर कोई रिश्ता निभाना चाहता है

कभी कभी तो जुदा बे-सबब भी होते हैं

सदा ज़माने की तक़्सीर थोड़ी होती है

वो और थे कि जो ना-ख़ुश थे दो जहाँ ले कर

हमारे पास तो बस इक जहान था रहा

फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है

तअल्लुक़ टूटने को इक बहाना चाहता है

Recitation

बोलिए