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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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इबरत मछलीशहरी

जौनपुर, भारत

इबरत मछलीशहरी के शेर

सुना है डूब गई बे-हिसी के दरिया में

वो क़ौम जिस को जहाँ का अमीर होना था

जब जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर

तो वापस लौट कर गुज़रे ज़माने क्यूँ नहीं आते

क्यूँ पशेमाँ हो अगर वअ'दा वफ़ा हो सका

कहीं वादे भी निभाने के लिए होते हैं

वो यूँ सुबूत-ए-उरूज-ओ-ज़वाल देता था

उठा के हाथ में पत्थर उछाल देता था

ज़मीं के जिस्म को टुकड़ों में बाँटने वालो

कभी ये ग़ौर करो काएनात किस की है

अपनी ग़ुर्बत की कहानी हम सुनाएँ किस तरह

रात फिर बच्चा हमारा रोते रोते सो गया

ज़िंदगी कम पढ़े परदेसी का ख़त है 'इबरत'

ये किसी तरह पढ़ा जाए समझा जाए

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