इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल 20
अशआर 21
ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते
तुम नहीं हो तो नज़ारे नहीं अच्छे लगते
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वक़्त ख़ामोश है टूटे हुए रिश्तों की तरह
वो भला कैसे मिरे दिल की ख़बर पाएगा
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यही फ़साना रहा है जुनूँ के सहरा में
कभी फ़िराक़ के क़िस्से कभी विसाल की बात
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शिकस्ता-दिल अँधेरी शब अकेला राहबर क्यूँ हो
न हो जब हम-सफ़र कोई तो अपना भी सफ़र क्यूँ हो
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किताब-ए-ज़ीस्त का उनवान बन गए हो तुम
हमारे प्यार की देखो ये इंतिहा साहब
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