जलील हैदर लाशारी के शेर
जाने कब कौन किसे मार दे काफ़िर कह के
शहर का शहर मुसलमान हुआ फिरता है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
वक़्त की मौज हमें पार लगाती कैसे
हम ने ही जिस्म से बाँधे हुए पत्थर थे बहुत
-
टैग : वक़्त
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
वो दिल का टूटना तो कोई वाक़िआ न था
अब टूटे दिल की किर्चियों की धार से बचो
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
बंद कर बैठे हो घर रद्द-ए-बला की ख़ातिर
एक खिड़की तो खुली रखते हवा की ख़ातिर
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
तू ने दस्तक ही नहीं दी किसी दरवाज़े पर
वर्ना खुलने को तो दीवार में भी दर थे बहुत
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मिरे वजूद में वो इस तरह समो जाए
जो मेरे पास है सब कुछ उसी का हो जाए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड