ज्योती आज़ाद खतरी के शेर
उस से बातें तो बहुत करनी थीं पर सोच लिया
उस की हर बात पे कहना है कोई बात नहीं
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मैं सामने हूँ अभी गुफ़्तुगू करो मुझ से
कि बाद में मिरी तस्वीर देखते रहना
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दस्तूर ही अलग है तिरी बज़्म-ए-नाज़ का
इल्ज़ाम दे के कह दिया इल्ज़ाम ही तो है
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उसी के चेहरे पे आँखें हमारी रह जाएँ
किसी को इतना भी क्या देखना ज़रूरी है
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ख़ुदा का शुक्र है इस राब्ते पर
उसे मंज़िल मुझे रस्ता बनाया
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तमाम रात मैं ख़ुद से सवाल करती रही
जिसे छुआ हो हक़ीक़त में ख़्वाब कैसे हुआ
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मैं अपनी आँखों से दुनिया को जीत लाऊँगी
तू मेरे पाँव की ज़ंजीर देखते रहना
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सामने आए बिना उस से मुख़ातब रहना
एक जादू है जो आता है मुझे सिर्फ़ मुझे
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मौज दरिया की जिसे छूती न हो
उस किनारे से किनारा कर रहे हैं
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सच पूछो तो हम को हमारी
आँखों ने बर्बाद किया है
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हम ने अश्क बहाए कब हैं
पानी को आज़ाद किया है
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जिस के चेहरे पे मैं मरती हूँ सितम तो ये है
उस की तस्वीर ही एल्बम में मिरे साथ नहीं
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कितने चेहरे हैं मुसव्विर के तसव्वुर में निहाँ
पर वो तस्वीर बनाता है मुझे सिर्फ़ मुझे
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कभी दरिया कभी सहरा बनाया
किसी के इश्क़ ने क्या क्या बनाया
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तुझ को देखूँ तो यही सोचती हूँ मैं अक्सर
देख हैराँ मुझे हैरान कोई और न हो
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ऐसा वैसा कोई न समझे मुझे
'मीर' 'ग़ालिब' की शायरी हूँ मैं
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टैग : मीर तक़ी मीर
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मैं ने असरार अज़िय्यत में ही खुलते देखे
बात छोटी है मगर सब को बता दी जाए
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मान लेती मैं कहा उस का मगर
वो गुज़ारिश कर रहा है ज़िद नहीं
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अपनी पलकें झुका रही हूँ मैं
कोई आँसू बचा रही हूँ मैं
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सच पूछो तो हम को हमारी
आँखों ने बर्बाद किया है
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यूँही थोड़ी वो मिल गया मुझ को
मुद्दतों लापता रही हूँ मैं
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पहले उस को याद किया है
फिर आँसू ईजाद किया है
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