कैफ़ी बिलग्रामी के शेर
इक इक क़दम पे रक्खी है यूँ ज़िंदगी की लाज
ग़म का भी एहतिराम किया है ख़ुशी के साथ
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मुझे चाक-ए-गरेबाँ पर हँसी आई तो है लेकिन
मिरे हँसने पे उन की आँख भरी आई तो क्या होगा
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हर क़दम पर रह-ए-मोहब्बत में
ज़िंदगी का सवाल आता है
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हम ने इरादा तर्क-ए-तमन्ना का जब किया
तेरा ख़याल ऐ दिल-ए-नाकाम आ गया
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