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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Khan Hasnain Aqib's Photo'

हसनैन आक़िब

1971 | अकोला, भारत

हसनैन आक़िब के शेर

और थोड़ा सा बिखर जाऊँ यही ठानी है

ज़िंदगी मैं ने अभी हार कहाँ मानी है

बहुत उदास हैं दीवारें ऊँचे महलों की

ये वो खंडर हैं कि जिन में अमीर रहते हैं

ख़ुद को कभी मैं पा सका

जाने कितना गहरा हूँ

लफ़्ज़ों के हेर-फेर से बनती नहीं ग़ज़ल

शेरों में थोड़ी गर्मी-ए-जज़्बात भी तो हो

जी चाहता है तर्क-ए-मोहब्बत को बार बार

आता है एक ऐसा भी लम्हा विसाल में

ग़म उठाता हूँ ग़ज़ल कहता हूँ जीता रहता हूँ

लोग कहते हैं कि इक दिन 'मीर' हो जाऊँगा मैं

कटती है शब विसाल की पलकें झपकते ही

जिस की सुब्ह हो कभी वो रात भी तो हो

गरचे हल्का सा धुँदलका है तसव्वुर भी तिरा

बंद आँखों को ये मंज़र भी बहुत लगता है

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