ख़ुर्शीद रिज़वी के शेर
तू मुझे बनते बिगड़ते हुए अब ग़ौर से देख
वक़्त कल चाक पे रहने दे न रहने दे मुझे
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आख़िर को हँस पड़ेंगे किसी एक बात पर
रोना तमाम उम्र का बे-कार जाएगा
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तमाम उम्र अकेले में तुझ से बातें कीं
तमाम उम्र तिरे रू-ब-रू ख़मोश रहे
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ये दौर वो है कि बैठे रहो चराग़-तले
सभी को बज़्म में देखो मगर दिखाई न दो
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बस दरीचे से लगे बैठे रहे अहल-ए-सफ़र
सब्ज़ा जलता रहा और याद-ए-वतन आती रही
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जो शख़्स न रोया था तपती हुई राहों में
दीवार के साए में बैठा तो बहुत रोया
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मौत की एक अलामत है अगर देखा जाए
रूह का चार अनासिर पे सवारी करना
हैं मिरी राह का पत्थर मिरी आँखों का हिजाब
ज़ख़्म बाहर के जो अंदर नहीं जाने देते
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टैग : आँख
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आसाँ तो नहीं अपनी हस्ती से गुज़र जाना
उतरा जो समुंदर में दरिया तो बहुत रोया
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हम कि अपनी राह का पत्थर समझते हैं उसे
हम से जाने किस लिए दुनिया न ठुकराई गई
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टैग : दुनिया
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हम तेरी तबीअत को 'ख़ुर्शीद' नहीं समझे
पत्थर नज़र आता था रोया तो बहुत रोया
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टैग : आब दीदा
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अक्स ने मेरे रुलाया है मुझे
कोई अपना नज़र आया है मुझे
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'ख़ुर्शीद' अब कहाँ है किसी को पता नहीं
गुज़रा तो था किसी का पता पूछता हुआ
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बहुत से रोग दुआ माँगने से जाते हैं
ये बात ख़ूगर-ए-रस्म-ए-दवा से कौन कहे
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इस ए'तिराफ़ से रस घुल रहा है कानों में
वो ए'तिराफ़ जो उस ने अभी किया भी नहीं
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तुम्हारी बज़्म से तन्हा नहीं उठा 'ख़ुर्शीद'
हुजूम-ए-दर्द का इक क़ाफ़िला रिकाब में था
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दो हर्फ़ तसल्ली के जिस ने भी कहे उस को
अफ़्साना सुना डाला तस्वीर दिखा डाली
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जो तमाम उम्र रहा सबब की तलाश में
वो तिरी निगाह में बे-सबब नहीं आ सका
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अब से पहले वो मिरी ज़ात पे तारी तो न था
दिल में रहता था मगर ख़ून में जारी तो न था
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मक़ाम जिन का मुअर्रिख़ के हाफ़िज़े में नहीं
शिकस्त ओ फ़तह के मा-बैन मरहले हम लोग
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मुझे भी अपना दिल-ए-रफ़्ता याद आता है
कभी कभी किसी बाज़ार से गुज़रते हुए
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पलट कर अश्क सू-ए-चशम-ए-तर आता नहीं है
ये वो भटका मुसाफ़िर है जो घर आता नहीं है
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नुस्ख़ा-ए-मरहम-ए-इक्सीर बताने वाले
तू मिरा ज़ख़्म तो पहले मुझे वापस कर दे
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मिरे इस अव्वलीं अश्क-ए-मोहब्बत पर नज़र कर
ये मोती सीप में फिर उम्र-भर आता नहीं है
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या शिकन-आलूद हो जाएगी मंज़र की जबीं
या हमारी आँख के शीशे में बाल आ जाएगा
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बिखर गया तो मुझे कोई ग़म नहीं इस का
कि राज़ मुझ पे कई वा हुए बिखरते हुए
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जिस्म की चौखट पे ख़म दिल की जबीं कर दी गई
आसमाँ की चीज़ क्यूँ सर्फ़-ए-ज़मीं कर दी गई
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