ख़ुसरो काकोरवी के शेर
मुझ को सौदाई किया रुस्वा किया
ज़ुल्फ़ फिर उलझी की उलझी रह गई
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ज़िंदगी पुर-कैफ़ बनती है यूँही
कीजिए ख़ून-ए-तमन्ना कीजिए
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उँगलियाँ उठने लगी हैं बज़्म में
यूँ मिरी जानिब न देखा कीजिए
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सब से पहले एक वादा कीजिए
दिल के तड़पाने से तौबा कीजिए
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ठंडी हवा है और घटा है घिरी हुई
साक़ी तिरा भला हो बुझा दे लगी हुई
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पूछ लेना था मिलोगे या नहीं
ज़िंदगी अब अपनी थोड़ी रह गई
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