कुमार विश्वास के शेर
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
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उसी की तरह मुझे सारा ज़माना चाहे
वो मिरा होने से ज़्यादा मुझे पाना चाहे
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दिल के तमाम ज़ख़्म तिरी हाँ से भर गए
जितने कठिन थे रास्ते वो सब गुज़र गए
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मिरा ख़याल तिरी चुप्पियों को आता है
तिरा ख़याल मिरी हिचकियों को आता है
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जब से मिला है साथ मुझे आप का हुज़ूर
सब ख़्वाब ज़िंदगी के हमारे सँवर गए
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जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सिलवट हटा रही होगी
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आदमी होना ख़ुदा होने से बेहतर काम है
ख़ुद ही ख़ुद के ख़्वाब की ताबीर बन कर देख ले
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फिर मिरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी
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अपने ही आप से इस तरह हुए हैं रुख़्सत
साँस को छोड़ दिया जिस सम्त भी जाना चाहे
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चारों तरफ़ बिखर गईं साँसों की ख़ुशबुएँ
राह-ए-वफ़ा में आप जहाँ भी जिधर गए
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