मदन मोहन दानिश के शेर
ये नादानी नहीं तो क्या है 'दानिश'
समझना था जिसे समझा रहा हूँ
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हो गए फिर तुम कहीं आबाद क्या
हिल गई तन्हाई की बुनियाद क्या
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ज़िंदगी से मोहब्बत करो टूट कर
मौत का काम दुश्वार करते रहो
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जब अपनी बे-कली से बे-ख़ुदी से कुछ नहीं होता
पुकारें क्यों किसी को हम किसी से कुछ नहीं होता
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कोई जब शहर से जाए तो रौनक़ रूठ जाती है
किसी की शहर में मौजूदगी से कुछ नहीं होता
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आसमाँ की नज़र से बचते हुए
इक सितारा उठा लिया मैं ने
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मोहब्बत रतजगे आवारागर्दी
ज़रूरी काम सारे हो रहे हैं
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ये हासिल है मिरी ख़ामोशियों का
कि पत्थर आज़माने लग गए हैं
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टैग : ख़ामोशी
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अच्छी रौनक़ है तुम्हारी बज़्म में
आ गए सब शहर के बर्बाद क्या
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इधर क्या क्या अजूबे हो रहे हैं
मरीज़-ए-इश्क़ अच्छे हो रहे हैं
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