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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Madan Mohan Danish's Photo'

मदन मोहन दानिश

1961 | ग्वालियर, भारत

मदन मोहन दानिश के शेर

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ये नादानी नहीं तो क्या है 'दानिश'

समझना था जिसे समझा रहा हूँ

ये हासिल है मिरी ख़ामोशियों का

कि पत्थर आज़माने लग गए हैं

कोई जब शहर से जाए तो रौनक़ रूठ जाती है

किसी की शहर में मौजूदगी से कुछ नहीं होता

ज़िंदगी से मोहब्बत करो टूट कर

मौत का काम दुश्वार करते रहो

मोहब्बत रतजगे आवारागर्दी

ज़रूरी काम सारे हो रहे हैं

जब अपनी बे-कली से बे-ख़ुदी से कुछ नहीं होता

पुकारें क्यों किसी को हम किसी से कुछ नहीं होता

हो गए फिर तुम कहीं आबाद क्या

हिल गई तन्हाई की बुनियाद क्या

इधर क्या क्या अजूबे हो रहे हैं

मरीज़-ए-इश्क़ अच्छे हो रहे हैं

आसमाँ की नज़र से बचते हुए

इक सितारा उठा लिया मैं ने

अच्छी रौनक़ है तुम्हारी बज़्म में

गए सब शहर के बर्बाद क्या

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