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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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माइल लखनवी

1905 - 1968

माइल लखनवी के शेर

सैलाब-ए-इश्क़ ग़र्क़-कुन-ए-अक़्ल-ओ-होश था

इक बहर था कि शाम-ओ-सहर गरम-जोश था

मोहब्बत और 'माइल' जल्द-बाज़ी क्या क़यामत है

सुकून-ए-दिल बनेगा इज़्तिराब आहिस्ता आहिस्ता

निगाह-ए-नाज़ की पहली सी बरहमी भी गई

मैं दोस्ती को ही रोता था दुश्मनी भी गई

याद और उन की याद की अल्लाह-रे मह्वियत

जैसे तमाम उम्र की फ़ुर्सत ख़रीद ली

नज़र और वुसअत-ए-नज़र मालूम

इतनी महदूद काएनात नहीं

दावा-ए-इंसानियत 'माइल' अभी ज़ेबा नहीं

पहले ये सोचो किसी के काम सकता हूँ मैं

मैं ने देखे हैं दहकते हुए फूलों के जिगर

दिल-ए-बीना में है वो नूर तुम्हें क्या मालूम

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