महेश चंद्र नक़्श के शेर
इस डूबते सूरज से तो उम्मीद ही क्या थी
हँस हँस के सितारों ने भी दिल तोड़ दिया है
हाल कह देते हैं नाज़ुक से इशारे अक्सर
कितनी ख़ामोश निगाहों की ज़बाँ होती है
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ख़ुद-शनासी थी जुस्तुजू तेरी
तुझ को ढूँडा तो आप को पाया
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उन के गेसू सँवरते जाते हैं
हादसे हैं गुज़रते जाते हैं
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शाम-ए-हिज्राँ भी इक क़यामत थी
आप आए तो मुझ को याद आया
तस्कीन दे सकेंगे न जाम-ओ-सुबू मुझे
बेचैन कर रही है तिरी आरज़ू मुझे
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मोहब्बत का उन को यक़ीं आ चला है
हक़ीक़त बने जा रहे हैं फ़साने
तस्वीर-ए-ज़िंदगी में नया रंग भर गए
वो हादसे जो दिल पे हमारे गुज़र गए
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उन मस्त निगाहों ने ख़ुद अपना भरम खोला
इंकार के पर्दे में इक़रार नज़र आए
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बहुत दुश्वार थी राह-ए-मोहब्बत
हमारा साथ देते हम-सफ़र क्या
कौन समझे हम पे क्या गुज़री है 'नक़्श'
दिल लरज़ उठता है ज़िक्र-ए-शाम से
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टैग : शाम
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यूँ रूठ के जाने पे मैं ख़ामोश हूँ लेकिन
ये बात मिरे दिल को गवारा तो नहीं है
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मिरी नाकामियों पर हँसने वाले
तिरे पहलू में शायद दिल नहीं है
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टैग : दिल
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दुनिया से हट के इक नई दुनिया बना सकें
कुछ अहल-ए-आरज़ू इसी हसरत में मर गए
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यूँ गुज़रते हैं हिज्र के लम्हे
जैसे वो बात करते जाते हैं
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अग़्यार का शिकवा नहीं इस अहद-ए-हवस में
इक उम्र के यारों ने भी दिल तोड़ दिया है
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किस तरह करें तुझ से गिला तेरे सितम का
मदहोश इशारों ने भी दिल तोड़ दिया है
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फिर किसी की बज़्म का आया ख़याल
फिर धुआँ उट्ठा दिल-ए-नाकाम से
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मेरी ख़ामोशियों के आलम में
गूँज उठती है आप की आवाज़
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ऐ 'नक़्श' कर रहा था जिन्हें ग़र्क़ नाख़ुदा
तूफ़ाँ के ज़ोर से वो सफ़ीने उभर गए
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फूल रोते हैं ख़ार हँसते हैं
देख! गुलशन का ये नज़ारा भी
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डूबने वाले मौज-ए-तूफ़ाँ से
जाने क्या बात करते जाते हैं
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ये ज़ोर-ए-बर्क़-ओ-बाद ये तूफ़ान अल-अमाँ
महरूम हो न जाएँ कहीं आशियाँ से हम
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ज़िंदगी का बना सहारा भी
और उन के करम ने मारा भी
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तिरी बज़्म-ए-तरब में आ गया हूँ
मगर दिल को सुकूँ हासिल नहीं है
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